Friday, 7 August 2020

ग़लती क्या थीं
कभी-कभी कुछ रिश्ते
सिसकते हैं, बिलखते हैं, तरसते हैं
न चाहते हुए भी दे जाते है
अपनी प्रतिक्रिया
रुधन स्वर में....
स्वतंत्र होकर भी,खुद को
जकड़ लेते हैं गुनहगार की बेड़ियों में
और स्वयं ही अदा करने लगते हैं
जज-वकील, दोषी-निर्दोषी की भूमिका
कभी-कभी तो
एकांत वातावरण में
बिछा देते है अपना मन
और घटाते-बढ़ाते रहते है
जीवन के उलझे हुए फंदों को
लेकिन, जैसे ही मिल जाता है
किसी अपने का प्रेम भरा स्पर्श,तो
अपनी एड़ियां पटक -पटक कर
उस स्पर्श में खुद को समेट कर
इस तरह बहा देते है
अपनी सागर-सी वेदनाएँ
जैसे, पूछ रहें हों
मुझे कोई तो बताए
मेरी ग़लती क्या थीं?

रजनी अवनि 




Thursday, 25 June 2020

ज़माना उल्टा हो गया हैं "साहिब" 
अब 
ज़ुबान सुनती हैं 
आँखे बेधड़क कह जाती हैं 
और 
देखने को बहुत कुछ 
तरस जाते हैं कान 
सच 
बिलकुल बदल गया हैं इंसान । 

**अवनि **